-विशेष सम्पादकीय-
पटना सेंट्रल डेस्क। देश के तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी शिकस्त से नीतीश कुमार को राहत पहुंची होगी। मंद-मंद मुस्कुरा रहे होंगे। अभी उनकी तबियत ख़राब है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब उनकी तबियत जल्द ठीक हो जायेगी। तीन राज्यों में कांग्रेस की भारी पराजय से बिहार की राजनीति में उसकी हैसियत घट जायेगी। राजद और जदयू से मोलभाव की स्थिति में अब नहीं रह गयी है कांग्रेस। ऐसे भी बिहार में कांग्रेस लोकसभा चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं है। अपनी ताजपोशी के एक साल बीत जाने के बाद भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने अभी तक प्रदेश कमिटी का गठन नहीं किया है। बिना संगठन के कोई पार्टी लोकसभा चुनाव कैसे लड़ पायेगी?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मिलर हाई स्कूल में आयोजित सीपीआई की रैली के मंच से ऐन चुनाव के वक़्त इंडिया गठबंधन की तेज़ चाल को सुस्त करने का कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाया था। “पंचमुखी न्यूज़’ ने उस वक़्त लिखा था कि नीतीश के बयान से भाजपा को चुनाव में लाभ मिल सकता है और वही हुआ। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बाज़ी पलट गयी। राहुल गांधी ने तेलंगाना में असद उद्दीन ओवैसी की सियासत (मुस्लिम क़यादत) को ख़त्म करने में जितना ज़ोर लगाया उतनी ताक़त उक्त तीन राज्यों में नहीं झोंकी। राजस्थान में अशोक गहलौत और सचिन पायलट आपस में उलझे रहे। पार्टी आलाकमान ने उसे सुलझाने की संजीदगी नहीं दिखाई। सीधे तौर पर सचिन पायलट को कमान सौंप देनी थी। उस झगड़े का नतीजा आज सामने है।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सेक्युलरिज़म का लबादा ओढ़ कर हिंदुत्व कार्ड खेलने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे थे। हिंदुत्व की जब भी बात आयेगी हिन्दू समाज नरेन्द्र मोदी को ही चुनेगा। नरेन्द्र मोदी के मुक़ाबले का हिन्दुत्व चेहरा अभी कोई दूसरा नहीं है। कांग्रेस सॉफ़्ट हिन्दुत्व और हार्ड हिन्दुत्व की दुविधा में फंसी हुई है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहला चुनावी वादा बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का किया था। प्रतिबंध लगा क्या? यह दुविधा नहीं तो और क्या है? छत्तीसगढ़ को भूपेश बघेल के सहारे छोड़ दिया गया। कह सकते हैं कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बीजेपी को सेफ पैसेज दिया गया। कांग्रेस का पूरा ज़ोर तेलंगाना पर था।
इस नतीजे का बिहार में सिर्फ महागठबंधन की राजनीति पर ही असर नहीं पड़ेगा। बल्कि एनडीए गठबंधन के पार्ट्नर्स भी प्रभाव में आयेंगे। चिराग़ पासवान, उपेन्द्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी को अब बीजेपी घुटने पर रखेगी। इन लोगों की अब मुंह मांगी सीट मांगने की स्थिति नहीं रह गयी है। कांग्रेस की हार से जहां नीतीश को ख़ुशी मिली होगी। वहीं, चिराग़, मांझी, कुशवाहा को बीजेपी की जीत से मायूसी हाथ लगी होगी। स्थिति अब ऐसी बदल चुकी है कि नीतीश पर निगाह रखनी होगी। अब चाल चलने का वक़्त नीतीश कुमार का है..!
आपकी दूरदर्शी और पैनी नजर काफी महत्वपूर्ण होती है
एडिटरियल संतुलित और सत्यामुखी है
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अरुण बाबू ने इस एडिटरियल
जो भी लिखा है वह सत्यनिष्ठ है
आप अरुण बाबू जब लिखते हैँ तो सत्य को पाठकों के लिए सुलभ कर देते हैँ।