इंडिया गठबंधन में नीतीश को लटका कर रखा गया। नीतीश चाहते थे जो भी हो जल्दी हो। नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने 2023 में ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का घोषणा कर दिया था। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना है। नहीं तो नीतीश को संयोजक या पीएम उम्मीदवार बना कर ज़िम्मेदारी सौंप देते। कांग्रेस कभी विधानसभा चुनाव में व्यस्त रही कभी भारत जोड़ो में। सिर पर चुनाव है तो राहुल पद यात्रा कर रहे हैं। भोज के दिन कोहड़ा रोपना। इस पर तुर्रा यह कि ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम चुपके-चोरी आगे बढ़ा दिया। नीतीश यहीं से नाराज़ हुए। उन्हें मनाने का प्रयास नहीं किया गया। जब चिड़िया चुग गयी खेत तो लालू,खड़गे मनाने में लगे। नीतीश पर सारा दोष मढ़ना कहीं से जायज़ नहीं है।
– राजनैतिक विश्लेषक –
पटना सेंट्रल डेस्क। नीतीश मुख्यमंत्री थे, आज भी हैं। नीतीश प्रधानमंत्री का ख़्वाब देख रहे थे। ख़्वाब देखना गुनाह नहीं है। मुख्यमंत्री रहते हुए कोई भी आदमी ऊब सकता है। 2013 में नीतीश पहले राजनीतिज्ञ थे जिसने नरेन्द्र मोदी को बजाबता ’दाग़ी’बताया। लम्बा-चौड़ा इंटर्व्यू देकर इन्होंने कहा दाग़ी आदमी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नहीं होना चाहिए। इसी सवाल पर भारतीय जनता पार्टी से इन्होंने सम्बन्ध तोड़ लिया।
धर्मनिरपेक्ष तबक़ा और मुसलमानों ने नीतीश का साथ नहीं दिया। लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी ज़मीन सूंघ गयी। स्मरण कीजिए, आज की तरह ही 2015 में विपक्ष एकजुट हुआ था। लालू, मुलायम, शरद, नीतीश सब साथ आ गये थे। कांग्रेस भी साथ थी। उस वक़्त भी जदयू नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल के बतौर पेश कर रही थी। नीतीश, लालू के साथ आये भी थे इसी वास्ते. मुलायम सिंह यादव की नीतीश को पीएम उम्मीदवार बनाने को लेकर सहमति थी।
लालू प्रसाद ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। नतीजा यह हुआ ढाई साल बाद नीतीश कुमार 2017 में गठबंधन से बाहर निकल गये। 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्ष की मिट्टी पलीद हो गयी। नीतीश भाजपा के साथ थे। विपक्ष को नीतीश की ज़रूरत महसूस होने लगी। फिर प्रयास शुरू हुआ। 2022 में नीतीश फिर एनडीए से निकल गये। लालू प्रसाद ने इन्हें समझा कर लाया था कि राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। नीतीश की गलती यह रही कि प्रधानमंत्री का सपना फिर पाल लिया। मगर इस बार वह दृढ़ संकल्पित हो कर आये थे। उन्होंने एलान भी कर दिया कि 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जायेगा।
नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ मोर्चा लेते हुए नीतीश ने देश भर में समां बांधना शुरू भी कर दिया। भाजपा के विरुद्ध माहौल बनने लगा। पटना में 18 दलों को एक मंच पर नीतीश ने ही बैठाया। नीतीश को फ़िलहाल इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाने की चर्चा चल पड़ी। बेंगलूरू में इसका एलान होना तय था। लालू ने अड़ंगा लगा दिया। पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने की शर्त रखी। सम्भवतः लालू प्रसाद को लगता है अपने जीते जी तेजस्वी को मुख्यमंत्री नहीं बना पायें तो शायद फिर नहीं बन पाये। राजद कुछ हड़बड़ी में दिखा। बीच-बीच में पार्टी के अंदर से ही तेजस्वी की ताजपोशी की ख़बर उड़ती रही।
इधर, इंडिया गठबंधन में नीतीश को लटका कर रखा गया। नीतीश चाहते थे जो भी हो जल्दी हो। नरेन्द्र मोदी को भाजपा ने 2023 में ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का घोषणा कर दिया था। राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना है नहीं तो नीतीश को संयोजक या पीएम उम्मीदवार बना कर ज़िम्मेदारी सौंप देते। कांग्रेस कभी विधानसभा चुनाव में व्यस्त रही कभी भारत जोड़ो में। सिर पर चुनाव है तो राहुल पद यात्रा कर रहे हैं। भोज के दिन कोहड़ा रोपना। इस पर तुर्रा यह कि ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम चुपके-चोरी आगे बढ़ा दिया। नीतीश यहीं से नाराज़ हुए। उन्हें मनाने का प्रयास नहीं किया गया। जब चिड़िया चुग गयी खेत तो लालू,खड़गे मनाने में लगे। नीतीश पर सारा दोष मढ़ना कहीं से जायज़ नहीं है।
इसके लिए लालू-कांग्रेस सब दोषी हैं। अब चुनाव का तीन महीना बचा है। इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग तक नहीं हुआ है। खड़गे ही सही आधिकारिक रूप से उनके नाम का पीएम उम्मीदवार के रूप में घोषित नहीं हुआ है। इंडिया गठबंधन के पास न चेहरा है न समीकरण, चुनाव कैसे लड़ेगा?
इंडिया गठबंधन में शामिल हर दल अपना दांव खेल रहा है। हेमन्त सोरेन को भी तोड़ने का प्रयास चल रहा है। गठबंधन मूक दर्शक बना हुआ है। ममता को मनाने का प्रयास विफल दिख रहा है। बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन जोड़ने के बजाय हर रोज़ गठबंधन तोड़ने वाला बयान देते हैं। रस्सी जल गयी, अकड़ कांग्रेस की नहीं गयी है। लोकसभा चुनाव बाद भी लगता है कांग्रेस यात्रा में ही रहेगी?
-पंचमुखी न्यूज़